भागवत कथा धर्म के रास्ते पर चलने की सीख देती है, इसलिए सात दिवसीय कथा के दौरान बताई गई

 भागवत कथा धर्म के रास्ते पर चलने की सीख देती है, इसलिए सात दिवसीय कथा के दौरान बताई गई अच्छी बातों को जीवन मे उतारे तथा प्रयास यही करे कि हमारा मन सदैव परमात्मा की भक्ति मे लगा रहे, ताकि जीवन सुख शांतिमय व्यतीत हो सके ।
यह विचार आचार्य जितेन्द्रकृष्णजी महाराज ने राधा-कृष्ण भक्त मंडल विक्रमगढ व्दारा ओंकारेश्वर महादेव मंदिर परिसर मे आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के विश्रांति दिवस रविवार को कथा वाचन के दौरान व्यक्त किया । उन्होंने कहा कि शास्त्र मे सबसे बडा दान कन्यादान बताया गया है और इस दान से मोक्ष की राह आसान होने का उल्लेख है, इसलिए प्रयत्न करे कि हम किसी अन्य की बेटी का विवाह कराने की जिम्मेदारी लेकर पुण्य लाभ अर्जित करें । उन्होंने कहा कि भक्ति और दान के कार्यो मे अंहकार नही करना चाहिए ये पतन का कारण है तथा दान भी पात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि गरीबी सबसे बडा दुःख है, सुदामा ने गरीबी जीवन जिया लेकिन उसने कभी भी अपने बालसखा श्रीकृष्ण को यह दशा नही बताई और जब उसकी पत्नी सुशीला के कहने पर वे व्दारकाधीश से मिलने पहूंचे तो भगवान ने उसकी स्थिति देखकर सब कुछ बिना मांगे ही दे दिया । श्रीकृष्ण-सुदामा मिलन के मार्मिक प्रसंग वाचन के साथ इसका सजीव चित्रण भी किया गया । इस दौरान समूचे पांडाल के श्रध्दालुओं की ऑखों से आंसू बह निकले ।
उन्होंने कहा कि शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को कथा श्रवण कराई और तक्षक नाग ने आकर उनका उध्दार कर दिया । कथा विश्रांति पर चार कन्या व तुलसी सहित कुल पांच का सामुहिक विवाह का भव्य आयोजन भी हुआ ।
कथावाचक का कथा आयोजक मंडल सहित अन्यों के व्दारा स्वागत-सम्मान किया गया, आरती के बाद भंडारे का आयोजन शुरू किया गया जिसमे दो हजार से अधिक लोगों ने भोजन प्रसादी का लाभ लिया ।
फोटो – कथावाचक एवं उपस्थित श्रध्दालु

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