Alasee ki kheti : हमारे देश में अधिकतर किसान गेंहू, सोयाबीन, चना एवं रायड़ा की खेती करते है ओर आपको बता दे की, गेंहू एवं चना जैसी फसलों की खेती के लिए अत्यधिक पानी की आवश्यकता रहती है। अधिकतर किसानों के पास पानी का संकट रहता है। जिसके चलते कई किसानों को बेहतर उपज नहीं मिल पाती है। ज्यादा से ज्यादा किसान यह चाहते है की, उन्हें कम पानी में बेहतर उपज मिले। अलसी के खेती करने के लिए किसानों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
अलसी के लाभ एवं गुण क्या है (What are the benefits and properties of linseed
अलसी के बीज स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है, जिसका सेवन कैंसर जैसी घातक बीमारी को नियंत्रण करने में भी किया जाता है। साथ ही अलसी से पाचन, ब्लड शुगर को नियंत्रित, पेट सम्बंधित समस्याएं, कब्ज आदि को ठीक करने में सहायक है। अब इसका इस्तेमाल इतना स्वास्थ्यवर्धक है
तो बाजार में इसकी मांग हमेशा ही बनी रहती है। ऐसे में किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अलसी की खेती की एक और खास बात यह है कि इसे कम पानी में आसानी से उगाया जा सकता है।
हमारे देश में एवं मध्यप्रदेश में कहा होती है अलसी की खेती ?
हमारे देश में अलसी की खेती लगभग 2.96 लाख हैक्टर क्षेत्र में होती है जो विश्व के कुल क्षेत्रफल का 15 प्रतिशत है। अलसी क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का विश्व में द्वतीय स्थान है, उत्पादन में तीसरा तथा उपज प्रति हेक्टेयर में आठवाँ स्थान रखता है। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान व उड़ीसा अलसी के प्रमुख उत्पादक राज्य है।
मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश दोनों प्रदेशों में देश की अलसी के कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 प्रतिशत भाग आच्छादित है। मध्यप्रदेश में अलसी का आच्छादित क्षेत्रफल 1.09 लाख हेक्टेयर, उत्पादन 57400 टन और उत्पादकता 523 किलोग्राम/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय औसत उपज 502 कि.ग्रा./हे. है। मध्यप्रदेश के सागर, दमोह, टीकमगढ़, बालाघाट एवं सिवनी प्रमुख अलसी उत्पादक जिले हैं।
Read more : Indore Mandi Bhav : इंदौर मंडी में आई आवक के सभी फसलों के ताजा भाव देखे सारे ताजा भाव
प्रदेश में अलसी के खेती विभिन्न परिस्थितियों में असिंचित (वर्षा आधारित) कम उपजाऊ भूमियों पर की जाती है। अलसी को शुद्ध फसल मिश्रित फसल, सह फसल, पैरा या उतेरा फसल के रूप में उगाया जाता है। देश में हुये अनुसंधान कार्य से यह सिद्ध करते हैं कि अलसी की खेती उचित प्रबन्धन के साथ की जाय तो उपज में लगभग 2 से 2.5 गुनी वृद्धि की संभव है ।
कम पानी के कारण राजस्थान के किसानों की बढ़ेगी आय
कम पानी में होती है अलसी की खेती – आपको बता दे की, अलसी की खेती के लिए बहुत ही कम पानी की आवश्यकता रहती है। इसकी खेती में 2 से 2 सिंचाई काफी होती है। ऐसे में राजस्थान के किसानों को इसकी खेती से ज्यादा लाभ मिलेगा।
राजस्थान के झालावार में अलसी की खेती काफी अधिक मात्रा में की जा रही है। ये वहां के लिए नई खेती है जिसके लिए बाजार में इसका भाव भी काफी अच्छा मिल रहा है। अलसी की खेती के लिए अब झालावार के युवा भी रूचि दिखा रहे हैं।
अलसी की खेती के लिए भूमि का चुनाव
अलसी की फसल के लिये काली भारी एवं दोमट (मटियार) मिट्टियाँ उपयुक्त होती हैं। अधिक उपजाऊ मृदाओं की अपेक्षा मध्यम उपजाऊ मृदायें अच्छी समझी जाती हैं। भूमि में उचित जल निकास का प्रबंध होना चाहिए। आधुनिक संकल्पना के अनुसार उचित जल एवं उर्वरक व्यवस्था करने पर किसी भी प्रकार की मिट्टी में अलसी की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
अलसी के लिए खेत की तैयारी
अलसी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिये खेत भुरभुरा एवं खरपतवार रहित होना चाहिये। अतः खेत को 2-3 बार हैरो चलाकर पाटा लगाना आवश्यक है जिससे नमी संरक्षित रह सके। अलसी का दाना छोटा एवं महीन होता है, अतः अच्छे अंकुरण हेतु खेत का भुरभुरा होना अतिआवश्यक है।
अलसी में जल प्रबंधन या सिंचाई
अलसी के अच्छे उत्पादन के लिये विभिन्न क्रांतिक अवस्थाओं पर 2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।यदि दो सिंचाई उपलब्ध हो तो प्रथम सिंचाई बुवाई के एक माह बाद एवं द्वितीय सिंचाई फल आने से पहले करना चाहिये। सिंचाई के साथ-साथ प्रक्षेत्र में जल निकास का भी उचित प्रबंध होना चाहिये। प्रथम एवं द्वतीय सिचाई क्रमशः 30-35 व 60 से 65 दिन की फसल अवस्था पर करें।
पौध संरक्षण
अलसी के विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरूआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुचाई जाती है। इनका प्रबंधन निम्नानुसार किया जा सकता है।
कम खर्च में मिलता है अच्छा उत्पादन
बता दे कि, अलसी की फसल में निराई-गुड़ाई की भी जरूरत नहीं पड़ती है, साथ ही खरपतवार भी ना के बराबर ही पनपता है, क्योंकि उससे पहले ही वह गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए जिस दवा का इस्तेमाल करते हैं वही दवा अलसी की खेती के लिए उपयोग में लाते हैं। युवा किसान बताते हैं कि जब पौधा बड़ा हो जाता है तो उसमें यूरिया छिड़क देते हैं फिर उसमें एक ही बार सिंचाई करते हैं।
Read more : Wheat Mandi Bhav: एमपी की प्रमुख मंडियों के गेंहू के ताजा भाव जाने और साथ ही साबरमती गेंहू के ताजा भाव
अलसी की उत्पादन क्षमता एवं कमाई
किसान का कहना है कि अलसी की यह फसल महज 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। साथ ही उनकी एक बीघा जमीन से 4 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हुआ है। इसके अलावा बीते साल प्रति क्विंटल अलसी के 6000 रुपए मिल रहे थे, हालांकि इस बार भाव थोड़ा कम है।
वह बताते हैं कि तना भारी होने के चलते फसल को बारिश, ओले और आंधी का अधिक नुकसान नहीं झेलना पड़ता है। साथ ही वह अन्य युवा किसानों को सलाह देते हैं कि अलसी की खेती कम पानी और कम खर्चे में हो जाती है, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकता है।